स्त्री शक्ति
स्त्री शक्ति
आलता लगे पग धर
शर्माते सकुचाते किया गृह प्रवेश
अधूरी आकांक्षाओं के कंकड़
खुद पर सहते
बचाए रखा अपना स्वाभिमान
आसान नहीं था
माता-पिता के पक्ष में
धारण करना मौन
निभाते अपने कर्तव्य
झुका लेना परिवार को
अपनी ओर।
बिना विरोध बिना बहस
एक छोटी सी मुस्कान
और धीरे से ले लेना निर्णय
उठा लेना वह कदम
जिसके गलत होने पर होगी
सारी जिम्मेदारी उसकी।
पिता पुत्र सास पति के बीच
बने रहना सेतु
जिसके दोनों सिरे करते रहें खिंचाई
मुस्कुराते हुए
इस पक्ष की बातें उस पक्ष पहुंचाते
बना देना स्वीकार्य
न कोई ढिंढोरा न तमगा
न बेचारी न दुर्गा
बनकर धुरी थामे रखना
सच्ची शक्ति है यह नारी।
कविता वर्मा