इश्क
इश्क
तू मेरी ज़िंदगी तू ही मेरा ख्वाब है,
तू ही सादगी तू ही मुस्कान है,
जी चाहता है बस यही कहती रहूँ,
तू ही मेरी मन्नत तू ही मेरी जान है
न जाने कैसा ये तीर जिगर के पार हुआ,
न जाने क्यों ये दिल बेकरार हुआ,
तूम कभी मेरे सामने तो आए नही,
फिर भी न जाने क्यों तुझसे इतना मुझे प्यार हुआ।
तेरा नाम ही क्यों ये दिल रटता है,
क्यों ये दिल सिर्फ तुझ पे ही मरता है,
न जाने कितना नशा है तेरे इश्क में,
अब तो तेरी याद में ही ये दिन कटता है।
इश्क बिना जिंदगी फ़िज़ूल है,
लेकिन इश्क के भी अपने उसूल है,
कहते है इश्क में है बहुत उल्फ़ते,
जब तेरे जैसा हो साथी तो सब कबूल है।