बैठे हैं
बैठे हैं
नदी के तट पर दीप जलाएँ बैठे हैं
तेरे लौट आने की आस लगाएँ बैठे हैं
माँगी है दुआ तेरे दीदार की इस दिल ने
और हम अपनी नज़रों को झुकाएँ बैठे है
उठते रहे है तूफान अब तो ख़्वाहिशों के
हम जुम्बिश-ए-धड़कन को दबाएँ बैठे हैं
बुझा ना दे दीया उम्मीद का ये ज़माना
हम तेरे नाम को अपना बनाएँ बैठे हैं
आज तलक़ जल रहे दीयो के साथ हम भी
जुदाई की आग को आँसुओं से बुझाएँ बैठे हैं।