बारिश
बारिश
बारिश की बूंदों ने ऐसा कुछ किया है कमाल,
कि कलम सोयी थी कई दिनों से आज जागी है पकड़ के कमान।
तीर लगेगा निशाने पे सीधा दिल को चीर,
लोगों को लगती है दुखियारी पर बड़ी मधुर है ये पीर।
अपने को संभालता मैं सफर पे चलता रहा,
जाना कहा है किसी को खबर नहीं क्या पता कल रहूँ या ना यहाँ।
भंवरा सा मैं जाता रहा फूलों की तलाश में,
बाहर से मैं जोगी पर अंदर से था लाश मैं।
काश मैं उसे बचा पाता या कर पाता इज़हार मैं,
पूरी जिंदगी उसे देखने का क्या अब करूंगा इन्तजार मैं।
मंडराया मैं बाघों में पर तेरी नहीं हुई खुशबु महसूस,
लगा जैसे बाघों का बागबां खुद छुपा ह
ै कहीं पे महफूज।
फिजूल था ढूँढ ना पर ढूँढता तुझे उन पुरानी बातों में,
शायरों से सुना था पर आज पता चला कि
क्यूँ परियां आती है सिर्फ रात के ख़यालों में।
छुपाना चाहता हूँ बहुत कुछ पर इन उंगलियों पे
नहीं रहा किसी का अब बोझ,
चलती है तो जलते है काग़ज पर आंसू के पानी से जाते वो बुझ।
कहना तो बहुत था तुझसे पर वक़्त ने लिया ऐसा एक मोड़,
मेरी रफ्तार थी ज़्यादा फिसल गया इस रास्ते को छोड़
मैं, नशे में चूर मैं,
तुझमें मदहोश मैं,
कम पड़ते लफ़्ज़ तो खोलूँ शब्दकोश मैं,
होश में ना रहा तेरी वज़ह से पर क्यूं खुद को दूँ हर समय दोष मैं।