अवसाद
अवसाद
साथ रोने के लिए कोई नहीं तो अवसाद में वो कैसे न रहे,
नाजायज़ अरमानो का बोझ है सर पे तो बताओ कैसे वो बढ़े,
मन है बैठा अशांत पर सबके सामने हस कर वो खड़े,
दिमाग की सुन में असमर्थ तो अपनों से कैसे ना लड़े,
बस एक डर है जिसके डर से वो अपने मन में ही सड़े,
कि जवानी में उसे अपने माँ बाप की कमाई का खाना ना पड़े।
