आंधी से संघर्ष
आंधी से संघर्ष
थक गई हूं कंटीली रास्ते चलके,
लहू भी सुख चुका है अब तो बैसाख के ताप में जलके।
मन की गहराई में बूंद बूंद प्यार का रस खोजती हूँ,
जितना भी मिले उसे तिनका तिनका नापती हूँ।
सूखा सागर है, चाहूँ भी तो कितना समेटु,
झोली भरे ना भरे फिरभी आस है कि सब में थोड़ा थोड़ा बांटू।
कठिन है दिशा, एकाकी सा मन मेरा छाया को तरसे,
आंधी से संघर्ष कब तक हो, कभी तो फुहार सावन की बरसे।

