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Kabita Maharana

Inspirational

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Kabita Maharana

Inspirational

अपने मन का बन और मान भी

अपने मन का बन और मान भी

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तू गंगा हे तू गगन भी 

तू विश्व हे, विश्वाश भी।

तू धैर्य हे धरित्री भी

तू आदर हे अधिकार भी।


चौखट की शोभा कभी, युगांतर की प्रमाण भी 

भुजाओं में संसार हे भारी, संघर्ष का प्रतिरूप भी।

क्षत हो विक्षत हो, परिणाम का भय भी

दृढ़ता का तिलक लगाए, निर्भीक लाती जीत भी।

तू जानती हे समय का करवट मिथ्या मृगतृष्णा भी 

नव पोशाक हे पर समाज तो वही हे आज भी।

अब और देर नहीं, उन्मादी मन को सुनहरे पंख तू दे भी

शूल प्रखर हो पर्वत, या उज्ज्वल उमड़ते मेघ तरंग भी 

दिगांत भी अनंत भी, पंख पसारे अब तू उड़ भी।


तू शांत बन समाधि भी 

तू जल बन और ज्वाला भी।

तू काया बन तू काल भी

तू माया बन मल्हार भी।

तू अपने मन का बन और मान भी

तू अपने मन का बन और मान भी।



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