माँ की साड़ी
माँ की साड़ी
1 min
180
माँ की साड़ी में महक भीनी भीनी सी जैसी माँ सी
हर सिलवट में सालों से संजोये हुए कुछ कुछ उसके प्यार जैसी।
पीली गुलाबी हरियाली सी हर रंग के भावों से खिल खिलाती
उसकी डांट, झूठमूठ का गुस्सा और सागर सा प्यार मुझ पे लहराती।
आँचल के कोने में न जाने कैसा जादू बाँधे रखती
धूप को छनती, फुहारों को टोकती और ठंडी बयार को अपने में समेट लेती।
चली गई न जाने किन बादलों के परे की अब वो लगती कुछ आकाश सी
माँ की साड़ी कुछ कुछ उसके प्यार जैसी।
