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Jain Sahab

Abstract Romance

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Jain Sahab

Abstract Romance

वो बारिश

वो बारिश

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कुछ फर्क ना रहा अश्क

और फलक की बूंदों में, 

न ठहरे तुम्हारे कदम,

न ठिठकी साँसे कुछ पल भी 


न जाने क्यों लगता है पुकारोगे

तुम कहीं से तो अब भी

आवाज हो न हो बस आहट ही सही 

दबे कदमों की सुगबुगाहट ही सही


खोजती है निगाह अब भी वो समां

जिनमें कहीं दर्ज हो तेरा नाम-ओ- निशान।


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