खोज
खोज
1 min
10
दुनिया की चीत्कार में अपनों की पुकार सुन रही हूँ
भीड़ की हाहाकार में सुख की मुस्कान चुन रही हूँ
गैरों से कर तो लेते हैं मतलब की बातें, जज्बातों की जुबान ढूंढ रही हूँ
कुछ सपने गुम थे जो उत्तरदायित्व के दरमियान
आज फिर वो अपनी पहचान ढूंढ रहे हैं।
खोए हुए से अहसास अपनी जुबान ढूंढ रहे हैं।
हर सफर को तलाश अब सिर्फ मंजिल की नहीं ,
कुछ को ख्वाहिश बस हमराह की है।
