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Jain Sahab

Inspirational

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वीतरागी वीर वर्धमान महावीर

वीतरागी वीर वर्धमान महावीर

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हे जिनवर, वीतराग, वीर, वर्धमान 

बतला दो फिर से मुझे पथ वो मुक्ति का दया निधान 

अष्ट कर्म क्षय कर बने सिद्ध तीर्थंकर महान। 


तारणहारा नाम तुम्हारा, समस्त जग को आपने उद्धारा 

शरणागत शत्रु को भी आपने सहज स्वीकारा ।

हिंसा पाप जग से मिटाने को उपसर्ग भी अत्यंत दुर्दांत सहे,

कटु वचन शत्रु के सुनकर भी समता को आप धारे रहे ।


हे वीरा मेरे महावीरा मुख मन पर मेरे सदा रहे नाम तुम्हारा 

न चाहूँ धन वैभव, न चाहूँ संसार, सुख दुख में बस सदा रहे साथ तुम्हारा

हे प्रिय त्रिशलानंदन, हस्त हमारे सदा करते रहे आपका वंदन

मुक्ति मार्ग बतलाकर काटो हमारे भव फंदन, सुनना न और पङे अब और जग का करूण क्रंदन। 


ये जग है मिथ्या सारा, बस आपका नाम ही है सच्चा सहारा

चंदनबाला, इंद्रभूति भक्त कितने ही तारे हैं 

नैया हमारी भी भवसागर से पार दो, हम भी तेरे ही सहारे हैं ।


सिद्धार्थ घर जन्म लिया, कुंडग्राम को धन्य किया 

अन्न, धन, ऋद्धि, सिद्धि, बुद्धि, लब्धि से जग को परिपूर्ण किया

'जियो और जीने दो' का मार्ग बतलाकर, 

' अहिंसा परमो धर्मः ' को चरितार्थ किया ।


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