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Jain Sahab

Abstract

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Jain Sahab

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एक खत

एक खत

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चलो आज फिर एक खत लिखे

नाम किसी के अपना वक्त लिखे

चलो आज फिर एक खत लिखे


फिर से थामे हम कलम दवात 

नाम किसी के लिखे अपनी सौगात 

कुछ रूठने के बहाने से

कुछ मना लेने के तराने से 

नए ना सही पुराने से

अफसाने बरसों के ज़माने से 

याद यूं ही किसी के आ जाने से

ना पता हो ना कोई मंजिल 

कोई खत यूं ही बेनाम लिखे

चलो आज फिर एक खत लिखे

नाम किसी के यूं ही अपना वक्त लिखे।


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