सुकून की तलाश
सुकून की तलाश
न जाने क्यों तुम्हारी तलाश है
अब भी न जाने क्यों तुम्हारे साथ की आस है
जानती हूँ ये मुमकिन नहीं
पर नजर को नामुमकिन की ही प्यास है
न भाती है अब कोई नज़्म
न गीत कोई सुहाता है
बारिश अब बंजर करती है
तपिश में भी न दिल घबराता है
सुकून की तलाश करता मन भी अब ना बहलाता है
दीप का अपनी लौ से जो नाता है
कुछ ऐसा ही संग अब यह मन चाहता है।
