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Jain Sahab

Abstract

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Jain Sahab

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सुकून की तलाश

सुकून की तलाश

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न जाने क्यों तुम्हारी तलाश है

अब भी न जाने क्यों तुम्हारे साथ की आस है

जानती हूँ ये मुमकिन नहीं

पर नजर को नामुमकिन की ही प्यास है


न भाती है अब कोई नज़्म 

न गीत कोई सुहाता है

बारिश अब बंजर करती है

तपिश में भी न दिल घबराता है

सुकून की तलाश करता मन भी अब ना बहलाता है

दीप का अपनी लौ से जो नाता है

कुछ ऐसा ही संग अब यह मन चाहता है।



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