मायूसी से मौसम तक
मायूसी से मौसम तक
बातें अब शोर लगने लगी है
मेरे हिस्से की चीखें अब खामोशी खोजने लगी है
दर्द की जुबान खामोशी और आंसुओं की जुबां मुस्कान बनने लगी है
सहारे ढूंढते सर कांधों की मजबूरी समझने लगे हैं
ख्वाहिशें अब अपना पता बदलने लगी हैं
इम्तिहान इजाजत का इंतजार करने लगे
मायूसी मौसम को मेहमान समझने लगी है
समय समीर बनकर बह चला
कुछ ठिठका था कहीं जो अब चल निकला
सब्र का बांध बह चला
तोड़ कर हर बंधन अब तुम भी फैला लो पर
भरकर हिम्मत बांध लो कर
और कर लो तय अपना सफर
खुद को खोजने की ख्वाहिश में अब अपना खोना भी मुमकिन नहीं
तो तय कर लो फासले मायूसी से मौसम तक के
इम्तिहान को और अब इंतजार न हो
कि हर गुल्लक अब बांटे खुशी
मायूस सा अब कोहरा न हो।