वजूद
वजूद
क्यों किसी का यूं ही खो जाना मुश्किल लगता है उसके होने से,
यूं ही आते हैं याद अक्सर ना होने पर वे लोग
होने पर जिनके वजूद का अहसास तक नहीं होता था ।
हर पल वह ख्याल में ,हर जवाब में ,हर सवाल में
जब नदारत होते हैं तो ही क्यों आते हैं याद हर हाल में
ऐसा क्या खो जाता है उनके जाने से
जो संजोया ना था अब तक उनके होने पर ।
कही सुना था कभी जो होता है वह अच्छे के लिए है
किसी अपने से बिछड़ जाने में क्या अच्छाई है
शायद इसकी तलाश ही अब अपने वजूद की सच्चाई है।
