अपने हिस्से का आसमान
अपने हिस्से का आसमान
कोई है जिसे नही मिला है अब तलक अपने हिस्से का आसमां,
उनकी आँखों से चाहो तो तुम पा लो ये सारा जहान।
अपनी मंजिल से वह है अब भी बहुत दूर,
पर सफर अभी भी उसका जारी है बदस्तूर।
हाँ पङाव कई उसने किए हैं अब तक पार ,
पर अभी भी अपने हिस्से का जहान पाने को है वो बेकरार।
कोई कोशिश करे तो क्या नहीं पा सकता यार,
बस अपने परिश्रम पर रखना यकीन और न मानना कभी हार।
फिर विजय पताका वही फहराएगा वही हर मोर्चे पर,
वक्त बीते चाहे दिनों में या बीते सदियाँ हजार।
बस रखना यकीन खुद पर और फिर सरलता से होगी हर मुश्किल पार।
हाँ वो पाकर रहेगा अपने हिस्से का आसमान भी,
चाहे लांघने पङे उसे पर्वत हजार।
चाहे करने पङे उसे कितने भी मझधार पार,
फिर भी उसी बुलंदी और जोश से तुम्हे मिलेगा वह तैयार।
हाँ पाकर रहेगा अपने हिस्से का आसमान वह भी यार !