वो तेरी पहली छुअन ,
होश मेरे उड़ा गई ,
मैं कुछ बोल ना सकी ,
पर मन ही मन घबरा गई |
वो क्या था .....
ये जब तक समझ आया ,
मैने झिझकते हुए ,
खुद को असहाय पाया |
संभाल कपड़े तुझे दूर हटा ,
मैं भागी होने लापता ,
बहुत देर अकेले खड़ी ,
अश्रुओं से था चेहरा भिगा |
फिर अचानक याद आया ,
जाना वहीं जहाँ तेरे साया ,
मैं चोरी चोरी नजरें छुपा ,
जा बैठी तेरा था दिल जहाँ |
ना कोई शब्द तब तू बोला ,
ना ही मैने तुझसे आँख मिलाई ,
फिर भी जमाने की नजरों में ,
ऐसा लगा हमारी हो रही रुसवाई |
मैं खोयी - खोयी बस तकती रही ,
तू जो भी था सब पढ़ा रहा ,
मगर दिल~ओ ~दिमाग में ,
एक अजब सा नशा था छा रहा |
तू समझ गया मेरी बेचैनी ,
फिर कसने लगा मुझ पर तंज ,
मैं मन ही मन में हारी हुई ,
कैसे करती तुझसे कोई रंज ?
ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था ,
यूँ अचानक किसी ने छुआ नहीं था ,
मैंने घर जाकर कितनी बार ना जाने ,
अपनी धड़कनों को सौ बार सुना था |
वो तेरी पहली छुअन ,
होश मेरे उड़ा गई ,
मैं कुछ बोल ना सकी ,
पर मन ही मन घबरा गई ||