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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

घमंड

घमंड

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इतना घमंड करना भी तेरा ठीक नहीं

तू एक बुलबुला है, कोई दरिया नहीं

जिस दिन गिरेगा तू कभी ऊंचाई से,

नभ क्या, मिलेगा जमीं टुकड़ा भी नहीं


तू इंसान है, इंसान की तरह ही जी, न,

क्यों इंसानियत छोड़कर, पशु बनता है

तू एक आदमी है, कोई जानवर नहीं

इतना घमंड करना भी तेरा ठीक नहीं


तू एक बुलबुला है, कोई दरिया नहीं

उड़ उतना ही, की तू वापिस लौट सके,  

तू मनुष्य है, कोई पक्षी दहलीज नहीं

गुरुर रख, इतना स्वाभिमान बचा सके


स्वाभिमान रख, पर तू अभिमानी नहीं

आजकल घमंड करना भी जरूरी है

लोग सादगी को समझते मजबूरी है

इतना घमंड करना तो तेरा ठीक ही है,


तू फूल है, गुलाब का कोई मजबूरी नहीं

सरलता को भले तू रोम रोम में बसा ले

वक्त-वक्त पर शोला बन तू माटी नहीं

जो सताये, स्वाभिमान को ठेस पहुंचाये


उसे न छोड़, तू जिंदा है, मुर्दा ज़िस्म नहीं

मद न कर, स्व को इतना कमजोर न कर,

सब सिर बैठे, तू शेर है, कोई गीदड़ नहीं

गुरुर कर सदा साखी अपनी सच्चाई पर,

रश्मि है, सूर्य की, तू कोई बुझी चिंगारी नहीं।


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