हमसफ़र
हमसफ़र
किया कसूर नहीं फिर ये क्यों सजा आयी।
सरेबाज़ार कहाँ से ये बद्दुआ आयी॥
मैं जिसके प्यार में यूँ ही मिटा दिया खुद को।
उसी के बज़्म से ढाने कहर हवा आयी॥
दिलोदिमाग यही इक सवाल पूछ रहे।
न जाने बात हुई क्या कि ये जफ़ा आयी॥
कभी जो साथ रहे बनके हमसफ़र मेरे।
दरोदीवार से उनके ही ये सिला आयी॥
खिजां का फूल बनी जिंदगी हमारी फिर।
सुकून छोड़ गया काम मयकदा आयी॥