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निशा शर्मा

Tragedy

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निशा शर्मा

Tragedy

बाबा!

बाबा!

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बाबा तेरे बागीचे की एक 

नन्ही सी कली थी मैं 


तुमनें मुझे बोया तुमनें मुझे बड़ा किया 

तुम्हारे संरक्षण में पली बढ़ी थी मैं 

बाबा तेरे बागीचे की एक 

नन्ही सी कली थी मैं 


बाबा तुम तो कहते थे मुझे 

नन्ही,नाजुक ,कांच की गुड़िया

फ़िर तुमनें मुझे एक पत्थर से क्यों ब्याह दिया 

मुझे याद है तुम्हारे इस फ़ैसले पर रो पड़ी थी मैं

बाबा तेरे बागीचे की एक 

नन्ही सी कली थी मैं 


बाबा वो जो थोड़े से पैसे तुमनें 

खूब मेहनत करके कमाये थे 

वो जो मेरे हाथ पीले करने में लगाये थे 

काश वो तुमनें मेरी किस्मत बदलने में लगाये होते

भईया जैसे सपनें काश मुझे भी दिखाये होते 

तो आज ये नन्ही सी कली तेरी 

तेरी ये कांच की गुड़िया

न यूं मसली न यूं रौंदी जाती

न किसी पत्थर से तोड़ी जाती

मैं भी आज अपना नाम बना पाती 

अपनें बाबा की शान बढ़ा पाती 

मगर अब तो बस मैं टूटते टूटते बिखर ही गयी हूँ 

चार कंधों की डोली से आयी यहाँ 

आज चार कंधों पर यहां से चली हूँ 


बाबा तेरे बागीचे की एक 

नन्ही सी कली थी मैं ।।



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