बयान ए दर्द...
बयान ए दर्द...
सुकून की सेज की दुआ तो माँगते थे ,हम भी कभी
मगर नींद तो अब दर्द के बिस्तर पर भी,आने लगी है।
शौक ए उल्फ़त फ़रमाने चले थे , हम भी कभी
मगर जफ़ाए यार अब हमसे, रोज टकराने लगी हैं।
यूं ही करता रहूँ मैं अपलक , तेरा दीदार
तेरे पहलू में यूं ही गुज़र जाये, मेरी उम्र तमाम।
ऐंसे जुमलों की दरकार करते थे, हम भी कभी
मगर उनके इल्जामात की चुभन भी अब हमें,भाने लगी है ।
किस अंदाज से बयां करता था वो, मेरी मासूमियत
कहकर मुझे मोम की गुड़िया ।
कितने कायल हुए ,उनके इस अन्दाज के,हम भी कभी
मगर उनकी बदलती फ़ितरत ही अब हमें,जफ़ाकश बनाने लगी है ।
करें तो करें किसकी इबादत हम अब, वो तो मेरे ही काफ़िर निकले,
जिनकी करते थे इबादत, हम कभी ,
बस यही उलझन अब हमें उलझाने लगी है ।
सुकून की सेज की दुआ तो मांगते थे , हम भी कभी
मगर नींद तो अब दर्द के बिस्तर पर भी ,आने लगी है।
उर्दू शब्दों का अर्थ....
उल्फ़त - इश्क ,प्यार ।
जफ़ा - जुल्म , अत्याचार ।
जफ़ाकश - सहनशील ।
काफ़िर - उपद्रवी , नास्तिक ।