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निशा शर्मा

Romance

3  

निशा शर्मा

Romance

छुअन...

छुअन...

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तुम्हारे हाथों की वो छुअन, है कितनी ताजा

जिसे आज भी जब चाहूँ मैं,

आंखें बन्द करके महसूस कर लेती हूँ।

तुम्हारी वो चमकती हुई उंगलियां जिनके पोरों में

पूरी दुनिया दिख जाया करती थी मुझे

आज भी जब चाहूँ मैं,

आँखें बन्द करके अपनी नजर में भर लेती हूँ।


तुम्हारी वो ठण्डी ठण्डी हथेलियाँ

जिन्हें मेरे गालों पर फ़िरा कर,

मन्द मन्द मुस्काया करते थे तुम

आज भी जब चाहूँ मैं,

आंखें बन्द करके उस एहसास से सिहर उठती हूँ।


कुछ भी तो नहीं बदला न, हमारे बीच

सिवाय एक झूठ के जो मैं रोज खुद से बोलती हूँ

तुम्हीं से शुरू तुम्हीं पर खत्म और तुम्हें ही,

न चाहने की वजह खुद में ढूंढती हूँ ।


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