STORYMIRROR

सूर्येन्दु मिश्र

Abstract

4  

सूर्येन्दु मिश्र

Abstract

मुझे भी कोई पढ़ता

मुझे भी कोई पढ़ता

1 min
249

काश! मुझे भी कोई पढ़ता


जीवन के इसी झमेले में

मिल गया था कोई मेले में

कुछ बातें हुईं थी अकेले में

कुछ बोझ मन का उतरता।


काश! मुझे भी.....…......


जीवन की राहें गहरी हैं

कहीं छांव कहीं दुपहरी है

कोई न समझता बातें मेरी

रुकता कोई न कुछ कहता।


काश! मुझे भी.....…......


कुछ लोगों ने तड़पाया मुझको

कुछ लोगों ने बहकाया मुझको

बाकी ने भी बहलाया मुझको

पूछा भी नही कि कुछ करता।


काश! मुझे भी.....…......


ये दुनिया तो आनी जानी है

सबकी अपनी तो कहानी है

अपना तो दुख रोया सबने

मैं किस किस पे आहें भरता।


काश! मुझे भी.....…......



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract