जगत को अनुकूल कीजिए
जगत को अनुकूल कीजिए
तन के रक्षण मन के पोषण हित,
त्यागना पड़ता अक्सर निज ठांव।
याद आती हैं उस अनपढ़ भाई की,
शिक्षाएं जो रहता था हमारे ही गांव।
सदा हम निज निर्णय लें समयानुसार,
बेवजह रार से बेहतर मान लेना हार।
जो प्रचण्ड मूर्ख हो उससे मत उलझिए
क्रोध आ गया तो देगा कर क्षति अपार।
प्रेक्षण करके ध्यान से, सदा सीख आप लीजिए,
सुपात्र को ही दीजै सीख ,ध्यान ये भी कीजिए।
गंवाना पड़ा था नीड़, सिखाकर ज्ञान कपि को,
कहानी-स्मरण बेचारी, चिड़िया का कर लीजिए।
स्वीकार जो न कर सको, हर हाल बदल दीजिए,
बदला न जा सके जिसे, सहर्ष स्वीकार कीजिए।
अनुकूलन जग में है, जरूरत हर एक जीव की ,
समायोजित हो के, जगत को अनुकूल कीजिए।
