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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

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AJAY AMITABH SUMAN

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गेहूँ के दाने

गेहूँ के दाने

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गेहूँ   के दाने  क्या होते, 

हल हलधर के परिचय देते,

देते  परिचय रक्त बहा है ,

क्या हलधर का वक्त रहा है।


मौसम कितना सख्त रहा है ,

और हलधर कब पस्त रहा है,

स्वेदों के कितने मोती बिखरे,

धार  कुदालों के हैं निखरे।


खेतों  ने कई वार सहें हैं,

छप्पड़ कितनी बार ढ़हें हैं,

धुंध थपेड़ों से लड़ जाते ,

ढ़ह ढ़ह कर पर ये गढ़ जाते।


हार नहीं जीवन से माने ,

रार यहीं मरण से ठाने,

नहीं अपेक्षण भिक्षण का है,

हर डग पग पे रण हीं माँगे।


हलधर दाने सब लड़ते हैं,

मौसम पे डटकर अढ़ते हैं,

जीर्ण देह दाने भी क्षीण पर, 

मिट्टी में जीवन गढ़तें हैं।


बिखर धरा पर जब उग जाते ,

दाने  दुःख  सारे  हर जाते,

जब  दानों  से उगते मोती,

हलधर के सीने की ज्योति।


शुष्क होठ की प्यास बुझाते ,

हलधर  में  विश्वास जगाते,

मरु भूमि के तरुवर जैसे, 

गेहूँ   के  दाने  हैं होते।


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