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Neeraj pal

Abstract

5.0  

Neeraj pal

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रुखसत।

रुखसत।

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अब तो रुखसत के दिन आये।।

 खाया, पिया मौज मनाया, दुनिया में ही समय गँवाया,

 निर्बल होती तेरी काया, जिसको तूने मल-मल धोया,

क्यों होता परेशान, अब तो रुखसत के दिन आये।।1।।


जिसके लिए तूने सब कुछ त्यागा, फीके पढ़ते उनसे नाता,

कर्म-अकर्म किए जो अब तक, वहीं सम्मुख तेरे आता,

 मत हो अनजान, अब तो रुखसत के दिन आए।।2।।


पल-पल तुझको अंतरमन ने, तुझको दिया एक नया मौका,

गर सुन लेता अंतरमन की, अब डूब न जाती तेरी यह नौका,

देर मत कर खुद को पहचान, अब तो रुखसत के दिन आये।।3।।


सपनों का महल जो तूने बनाया, खून-पसीना खूब बहाया,

आराम करने के जब दिन आए, अपनों ने ही गैर बनाया,

हुआ जीना तेरा हराम, अब तो रुखसत के दिन आये।।4।।


 जिंदगी है एक झूठा सपना, समझता रहा सब कुछ अपना,

 अगर चाहता इस खौफ से बचना, गुरु को अपना हमदर्द समझना,

तब होगा तेरा कल्याण, अब तो रुखसत के दिन आये।।5।।


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