आस दीप
आस दीप
कैद प्लास्टिक हुए तन डोले ।
मौत ..मंजर ..सजे मन हौले॥
काँपते चरण ..मंद ..बढ़ाये ।
पुष्प अंतस सभी झुलसाये॥
वक्त का चलन कातिल जैसा।
मौत सा कफन सी कर कैसा॥
प्राण छीन हँसूं चोर करोना ।
नीच चाल पर जीवन खोना॥
रूठ प्रकृति कोप दिखाती।
बानगी अजल रोष जगाती॥
धूम-धूं जलन यूँ.. तन झौंसे।
हैं चिता-जशन ज्यूँ मन हौंसे॥
रोक लो.. कदम.. अंदर बाँधो।
मास्क कल्चर अभी सब साधो॥
हौसला ..न कमजोर चलेगा ।
संयमी मनुज .. जीत बचेगा ॥
हौसला गजब सा हर में हो।
आस दीप जगते मन में हो ॥
जीत निश्चित जरूरत भी है ।
साथ में निकलने हल भी हैं ॥