गीतिका
गीतिका
संकट अधर्म सा छाया है।
पाखंड घोर गहराया है ॥
भूल गये स्व-संस्कार वैदिक।
गिरे ..गर्त ..पश्चिम भाया है॥
स्वाभिमान निज भाषा भूले
गौरव गाथा ..विसराया है ॥
खंड खंड कर भारत खोया ।
न अक्ल में अब भी आया है॥
मानवता ही सत्य जगायें।
सतपुरुषों ने बतलाया है॥
मूरख ऐसे बनकर कैसे ।
बाँट'भारती' को खाया है।।