कुलटा
कुलटा
ये पुरुष भी अजीब होते हैं
अपनी इच्छाओं के अनुरूप
नारी का रूप निर्धारित करते हैं
उन्हें बहन बेटी, मां
या कुलटा कह कर प्रताड़ित करते हैं
जब नारी अपने अधिकारों पर
काम करती है
अपनी इच्छा से अपना मुकाम तय करती है
समाज में पुरुष वर्चस्व को
चुनौती देती है
तब जो ठेस उनके अभिमान को लगती है
वह बिलख पड़ते हैं
क्रोध में धधक उठते हैं
भृकुटी उसकी तन जाती है
मुट्ठियां उनकी कस जाती है
फिर वो बाहुबल से दबाना शुरू कर देते हैं
नारी चरित्र को बदनाम करते हैं
उसे समाज में कुलटा कह कह कर
हिकारत की नजरों से देखने लगते हैं
उस पर अत्याचार करते हैं
वह अभागी
शरीर से कमजोर
उनकी निर्ममता पर
अपने अस्तित्व के लिए भीख मांगती है
उनकी प्रताड़ना पर
उनके ही पैर पड़ जाती है
पर वो निर्दयी
जरा भी उस पर रहम नहीं करते
उसके सर्वस्व को कुचल कर खाक रख देते हैं
डर, खौफ
दर्द और अपमान से कुचली नारी
सबसे दया की भीख मांगती है
सबको देख बचने की गुहार लगाती है
उसकी नजरें किसी बचाने वाले को ढूंढती है
पर कोई भी उस अबला को आकर नहीं बचाता
और अभिमान में चूर
उसे बालों से घसीट कर
ले जाने वाले पुरुष
एक दानव, नरभक्षी
का जीवन जीने लगते हैं
वो उसके शरीर से
उसका आंचल खींच लेते हैं
उसके स्वेत देह की गंध से
वो बहक जाते हैं
उसे अपनी हवस का शिकार बना देते हैं
जब मानवता शर्मसार हो रही होती है
खुद को इज्जतदार कहने वालों की
नजरें झुक रही होती हैं
तब वो उसे निर्वस्त्र कर
गलियों चौराहों में छोड़ देते हैं
अत्याचार की हर सीमा को
लांघ देते हैं
तब पुरुष भूल जाता है
वो अभागी
किसी की मां है किसी की बेटी है
किसी की बहन है
पर पुरुषत्व में चूर
वो उसे कुलटा कहता है
कुरुतियों की आड़ में
नारी का शोषण करता है
ये साजिशें हजारों वर्षों से
ज्यू का त्यूं चली आ रही है
नारी से अधिकार छीन
उन्हें ही अपमानित कर रही है
इस पुरुष मानसिकता को
जो कुरीतियों आडंबरों में लिपटी एक बीमारी है
नारी की अस्मिता पर भारी है
इसे अब बदलना होगा
मानवीयता को
और शर्मसार होने से रोकना होगा,
नारी को पूरा सम्मान
और उनका हक उन्हें देना होगा,
उसे देवी नहीं
इंसान के रूप में देखना होगा।
