पंख खोलकर उड़ने दो
पंख खोलकर उड़ने दो
घर की चारदीवारी से मुझे बाहर जाने दो
पंख खोलकर नील गगन में उड़ जाने दो
मैं हूं आपकी बेटी, मैं हूं आपकी बेटी,
मुझे मां-बापू कुछ तो कर गुजर जाने दो
न बनाओ घर की दीवारों को मेरी सलाखें,
मुझे आपके लिये कुछ तो बन जाने दो
पंख खोलकर नील-गगन में उड़ जाने दो
पुराणों में लिखा है और कुरान से जाना है,
बेटी एक नही दो घर का कोहिनूर दाना है
मुझे अमावस में पूनम चांदनी बन जाने दो
जग से ज्यादा हृदय के तम को मिटाने दो
पंख खोलकर नील गगन में उड़ जाने दो
भैया जैसे कुछ तो आज़ादी मुझे भी दो,
बंद चरागों से कुछ तो रोशनी मुझे भी दो,
मुझे भी अपने दूध का कर्ज चुकाने दो
किरण बेदी न तो अच्छी बेटी ही बन जाने दो
पंख खोलकर नील गगन में उड़ जाने दो
मुझे भी अपनी प्रतिभा कुछ तो दिखाने दो
मैं जानती हूं मर्यादा, काम न करूंगी आधा,
मुझे अपने इस घर आंगन को महकाने दो
मैं अपनी मां के दूध की लाज रखूंगी,
पिता के दिये हुए संस्कार पास रखूंगी,
मुझे आज की झांसी की रानी बन जाने दो
मार दूँ मातृभूमि में छिपे हुए गद्दारों को,
मुझे आज रण चंडी ही बन जाने दो
पंख फैलाकर नील गगन में उड़ जाने दो
ना करो तुम कोई भी फिक्र मेरी मां-बापू,
मुझे भेड़ियों के लिये शेरनी बन जाने दो
मैं सूर्य की रोशनी हूं, मैं आपकी बेटी हूं,
इस बेटी को भरोसा पे खरा उतर जाने दो
पंख फैलाकर नील गगन में उड़ जाने दो
मुझे भी ख़्वाबों को हकीक़त कर जाने दो
