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Kusum Joshi

Tragedy

4  

Kusum Joshi

Tragedy

वो मेरी कामवाली

वो मेरी कामवाली

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आज फिर से बिखरे बाल थे, 

कुछ उदास भी थी वो, 

पलकें भी कुछ भीगी थी, 

लगता था रात भर रोई हो, 


मैंने पूछा कि क्या हुआ, 

तो हंस दी हमेशा की तरह, 

कोई ज़वाब नहीं दिया,

ना करी कोई ज़िरह,


पलकें चुरा मुझसे,

झाड़ू की ओर लपकी,

ना देखूं मैं आंसू उसके,

जान ना पाऊं कमज़ोरी उसकी,


छिपा रही थी दर्द अपना,

एक झूठी हंसी के पीछे,

आहत तो बहुत थी,

पर दर्द को कहती किससे,


यह तो हर सुबह,

उसकी दिनचर्या का हिस्सा है,

अभी तो उसे कितने घरों में,

झूठ मूठ का हंसना है,


हर रोज़ सुबह से शाम,

खुद को व्यस्त रखती है,

हंसती बतियाती खुश रहती,

पर घर जाने से डरती है,


फ़िर वही दर्द वाही आंसू,

जैसे रात का मतलब रोना है,

कहती है यही किस्मत है मेमसाहब,

जो किस्मत में है होना है,


मैंने उसे बहुत बार समझाया,

सहन करना भी अपराध है,

तुम बस एक कदम बढ़ाओ,

हम सब तुम्हारे साथ हैं,


पर वो डरती है,

अपने बच्चों की खातिर चुप रहती है,

सह लेती है दर्द सारे पर,

कभी कुछ नहीं कहती है,


अपने दर्द में भी मुझे हंसाती है,

कभी मैं दुखी हो जाऊं तो समझाती है,

समाधान हर मर्ज़ का है उसके पास,

पर अपने दर्द का वो जानती नहीं इलाज़,


होठों पर हमेशा,

एक हंसी ओढ़ कर रखती है,

ना जाने उस हँसी के पीछे,

कितने ग़म को ढकती है,


सबके घरों को सहेजकर,

हर रोज़ व्यवस्थित कर जाती है,

पर बहुत प्रयत्नों बाद भी,

अपना जीवन सहेज ना पाती है,


स्वीकार कर लिया है उसने,

अब नियति के आघात को,

और हँसी में ढ़क लेती है,

दुख भरे जज़्बात को।



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