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Ashish Anand Arya

Tragedy

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Ashish Anand Arya

Tragedy

पूरा गुनाहगार बाप...

पूरा गुनाहगार बाप...

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कल खाना ही तो खिला रहा था.. उसको

बिल्कुल जैसे रोज खिलाता हूँ,

पहले चम्मच से खिलाया 

फिर शायद उसका मन नहीं था खाने का

तो उसकी पसन्दीदा दवा वाले ड्रॉपर से भी

खिलाकर देखा

जिससे खा लेती है अक्सर

तो आज भी खा ले शायद

सोच रहा था,

पर, फिर भी जो राज़ी न हुई वो

तो, अपने हाथों से भी

निवाला बना खिलाकर देखा,

पर जितने मन से खिला रहा था मैं

उतनी ही ज़िद्द से खाने को ही न तैयार थी वो

दाँत तो थे नहीं अभी

पर ज़िद्द में होठ पर होठ भींच रखे थे,

वैसे, रोज ही तो खाती थी मेरे हाथों से

फिर क्या हो गया था कल शाम से उसे

कि सुन ही न रही थी कुछ...

सोच ही रहा था मैं

और एकदम से फ़िर

बिल्कुल जैसे ठूँस ही दिया

उसके मुँह में वो एक निवाला

वो रो पड़ी

मैं कुछ पसीजा

पल भर को सहमा भी जैसे

पर मुझे तो उसे खाना खिलाना था

चाहे वो रो भी रही थी

मुझे उसे खाना खिलाना था

मैं कोई जबर्दस्ती नहीं कर रहा था उसके साथ

क्योंकि मुझे उसे खाना खिलाना था

मैं तो भला चाह रहा था उसका

तभी तो मुझे उसे खाना खिलाना था

वो रोती रही

मैं निवाले पर निवाले बना

ठूँसता रहा उसके मुँह में

क्योंकि ये अधिकार था मुझको

मैं तो आखिर बाप था उसका

बिल्कुल उसी तरह

जैसे और भी ढेरों बाप होते हैं

बेटी के किये को गलती ठहराकर

सामाजिक गुनाह के अपराध से 

और बेटियों को बचाने के लिए

ऑनर किलिंग को

अपराध नहीं...

बल्कि अपनी ज़िम्मेदारी मानने वाले...

पर जो भी होता हो समाज में

मैं तो गुनाहगार था...

बेटी को बिना समझाये, बिना बहलाये

ठूँस-ठूँस कर खिलाने वाला

उसे रुलाने वाला...

मैं गुनाहगार था...


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