STORYMIRROR

Ashish Anand Arya

Abstract

4  

Ashish Anand Arya

Abstract

बेईमान होती...ये थकान...

बेईमान होती...ये थकान...

1 min
404


ये मेरे दिन की थकान

कितनी बार

इतनी बेईमान होती है...

कि होती तो मेरी है

पर अपने ईमान पर 

बड़े ही चुपचाप

ये खुद को ढोती है!


मैं तो कतई नहीं चाहता

मेरे इस वक्त को खोना..

मुझे कतई पसंद नहीं

इस नींद भर देने वाली

थकान के आगोश में होना,

पर यह शायद खुद के

मुझमें होने से 

उतनी परेशान होती है

जितनी मेरी परेशानी से 

ये दुःख को

यूँ खुद पर ढोती है

और फिर चुपके से

मुझे बिना कुछ बताए 

मुझे लपेट अपने दामन में 

नींद से सुलह कर

जी भर कर मैं बनकर सोती है...


कि मेरे दिन की थकान

अपने ईमान पर बिल्कुल

सच्चे इंसान सी निर्भर होती है

और मैं फिर भी उसको 

कहता रहता हूं बेईमान 

क्योंकि बात तो 

अपने-अपने ईमान की ही होती है!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract