अपनों के हाथों ही खाए थे खंजर, जख्म तो हुआ गुदगुदा हो गया। ऐसा नहीं सच ना संभला था हमसे, कीमत बहु... अपनों के हाथों ही खाए थे खंजर, जख्म तो हुआ गुदगुदा हो गया। ऐसा नहीं सच ना संभल...
फासले बढ़ते जायेंगे ऐसे खामोशी कोई हल नहीं है जीने का कोई मक़सद चाहिए बिन मकसद कोई कल नहीं है... फासले बढ़ते जायेंगे ऐसे खामोशी कोई हल नहीं है जीने का कोई मक़सद चाहिए बिन...
उस पर मेरी छाया दिखा फिर एक आसमां न बना देना। उस पर मेरी छाया दिखा फिर एक आसमां न बना देना।
गुनाह कर भी लेता तो गुनाहगार नहीं होता इश्क़ मे होकर शायद वफ़ादार नहीं होता। गुनाह कर भी लेता तो गुनाहगार नहीं होता इश्क़ मे होकर शायद वफ़ादार नहीं होता।
आ गया जो हमारे दरमियाँ कोई तीसरा तो गुनाहगार हम हुए! आ गया जो हमारे दरमियाँ कोई तीसरा तो गुनाहगार हम हुए!
बद्तमीज हम बन गए चाहना जैसे गुनहगार हुआ ! बद्तमीज हम बन गए चाहना जैसे गुनहगार हुआ !