इश्क़ मे होकर भी वफादार नहीं होता
इश्क़ मे होकर भी वफादार नहीं होता
गुनाह कर भी लेता तो गुनाहगार न होता
जो मुझे इश्क़ हो भी जाता तुझसे
फिर भी तेरा यार न होता
ऐसे मत देख तू मुझको
ये जिंदगी उधार की है
हर मकां वाला मकानदार नहीं होता
उल्फ़त की तो हद है यारा
बस ये वक़्त मेहरबां नहीं होता
तेरी मुस्कान पर ही तो फिदा है
अंजान यूं ही किसी पे निसार नहीं होता
कि ये दौर ए जिंदगी कट ही जाएगी
अब खुद को लेकर खुद से भी
कोई सवाल नहीं होता
लिख भी दूँ तो क्या लिखूँ
कि मुझे खुद के सिवा किसी और से
अब प्यार नहीं होता
ग़फ़लत मे नहीं हूँ खुद को लेकर
हाँ हाँ ये सच है कि तेरा होकर भी
मै तेरा यार नहीं होता
गुनाह कर भी लेता तो गुनाहगार नहीं होता
इश्क़ मे होकर शायद वफ़ादार नहीं होता।