खंडहर दिल में फिर एक हवेली
खंडहर दिल में फिर एक हवेली
खंडहर दिल में आज फिर न एक हवेली बना देना
मुमताज-सी याद में आज फिर न एक ताज बना देना।
मौत भी खड़ी है आज फिर अनगिनत सवालों के साथ
मरते मेरे जिस्म के लिए आज फिर न एक जाल बना देना।
एक रात लिपटकर मुझसे, तुमने एक वादा किया था
अपने इश्क़ में मुझे फ़िर न तुम एक गुनहगार बना देना।
तुम्हारी इश्क की रातों में तबायत-सा साथ था
मुझे शौहर बोल फिर से न अपना यार बना देना।
मोहब्बत का पहाड़ तुम्हारे चांद से चेहरे पर फिर दिखा
उस पर मेरी छाया दिखा फिर एक आसमां न बना देना।

