जिंदगी मरती गयी हादसे जीते गये
जिंदगी मरती गयी हादसे जीते गये
जिंदगी मरती गयी हादसे जीते गये
ऐसे ही रोज कड़वे घूँट हम पीते गये!
कभी वक़्त हमसे कभी हम उससे रूठते
जुड़ते रहे ऐसे कुछ जैसे रोज फिर टूटते!
दोस्ती हमने भी की हर हाल में निभाई भी
लगा जैसे खुद की हस्ती को आग लगाई भी!
इल्जाम हम पे ही लगा हम खुद गुनहगार हुए
जो हमारे पीछे फिरते थे वो औरों के यार हुए!
कायर था जो मौके पर समाज में समझदार हुआ
बद्तमीज हम बन गए चाहना जैसे गुनहगार हुआ !