संभालती हूँ मैं
संभालती हूँ मैं
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कभी इस पैसे ने संभाला है मुझे
अब इसको संभालती हूँ मैं!
जब वक़्त नहीं होता खुद के लिये
तब खुद में से खुद को निकालती हूँ मैं!
कभी बेटी कभी बहन कभी पत्नी
ना जाने कितने रिश्तों को ढालती हूँ मैं!
कहने को परिवार है बच्चे भी है मेरे
मगर फिर भी कभी खुद को सालती हूँ मैं!
जब आता है खाविंद दुनियावी रंज में
तब बच्चों सा उसको पालती हूँ मैं!
मन करता है मेरा भी खुद के लिये जीने का
मगर खुद से ही अक्सर खुद को टालती हूँ मैं!!