माँझी रे
माँझी रे
ले चल नैय्या.. माँझी रे !
उस क्षितिज के पास
अरुणिम आतुर मिलन को..
धरती ..ये आकाश
साँझ की बेला है ..
सूरज आज अकेला है
लहरों का मंथर मिलन..
ये प्रतिबिम्ब अलबेला है
ले चल नैय्या ..माँझी रे !
उस क्षितिज के पास
ओट अवगुंठन नयन निहारें..
मिलन को आतुर आस
निशा विकल बाँहें प्रसार ..
श्यामल आंचल चन्द्रतारक डाल
आतुर आलिंगन को प्रगाढ़ ..
झाँपती सी ब्रहम्हांड झुका भाल
झिलमिल उर्मि दर्पण में ..
झाँकती ये मुस्कान ..
विमुग्ध भाव-भीनी सी यौवन लाज
रास रचाएँगे ज्यों ..
मिलन प्रिय !..मधु से आज
ले चल नैय्या.. माँझी रे !
उस क्षितिज के पास