चंदन माटी
चंदन माटी
धर्म हमारा रूठ न जाये ।
कर्म हमारा छूट न पाये ॥
वंदन सेवा धर्म सुहाना ।
चंदन माटी सौंध समाना ॥
कंचन काया क्लेश जगावे ।
भूख समावे हाय रुलावे ॥
छोड़ न पाये मोह मवाली।
ईश बचाये आस लगा ली॥
कांड सभी हैं नीच निराले।
दानव हिंसा से मन पाले॥
काग कलूटे हैं कजरारे ।
चाम अनूठी केंचुल हारे॥
छद्म हुए हैं रूप अनोखे ।
भेद न पाये अंतर धोखे ॥
आज मचा है तांडव सारा ।
सत्य पथी माँगे उजियारा ॥