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S R Daemrot (उल्लास भरतपुरी)

Tragedy

4.0  

S R Daemrot (उल्लास भरतपुरी)

Tragedy

लौट आ ए इंसानियत , शहीदों के नाम

लौट आ ए इंसानियत , शहीदों के नाम

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  चिराग कुल के हुऐ गुल, मातम छाया है ।

  किसी ने बेटा,किसीने शौहर,आज फिर गंवाया है।।

  लहू का रंग लाल-लाल देखो कैसा छितरा है।

  कितने बच्चों का आशियां,आज फिर से उजड़ा है।।


  जमीं-ओ-घास लहुलुहान हैं, इंसानी खून से।

  और बिखरे हैं टुकड़े मांस के कैसा ज़ुनून है। 

  बूढ़ी मां की दहाडें सुन,कलेजा मुहं को आता है।

  सूनी हुई मांग ,के अश्कों का ,समंदर सूख जाता है।।

   

  टूटती चूडियों की ख़नक ये किसको सुनाएगी ।

  अकेली जिंदगी को बोझ अब कैसे उठाएगी।।

  फफोले करती हैं दिल में,चीखें उसकी रुलाई में। 

  बहन बांधेगी बोलो राखियां, किसकी कलाई में ।।


  पथराई आँखें हैं जिनकी ,कहांये मासूम खोगये ।

  नहीं मालूम है इनको, कि ये यतीम हो गये।।

  पल में रुख वक्त का ,कैसे दरिंदा मोड गया है ।

  आज मझधार में कश्ती है ,मांझी छोड गया है।।


  बस! मेरे ईश्वर,और इस कदर इंशानी खून ना बरसे ।

  और अखबार में हर कोई बुरी खबर को तरसे ।।

  कोई भी नाजनीं तोडे ना, चूडियां दहाडकर ।

  बूढ़े मां-बाप भी खुश हों ,अपने सुत को निहार कर।।


  न कोई मांग हो सूनी ,न ही बच्चे यतीम हों ।

  और हर बहन की राखी को ,कलाई नसीब हो ।।

  न हो नफ़रत दिलों में बस मौहब्बत का जुनून हो।

  कभी गफलत में भी ,इंशां का न इंशां से खून हो।। 


  नफरत के दिल में फिर से फूटें, अंकुर ये प्यार के।

  ख़िज़ाँ का खात्मा हो, फिर से हों मौसम बहार के।

  हर मुसलमां के दिल में,फागुनी होली के रंग बरसें।

  हिन्दु हमारे मुल्क में भी, ईद को सरसे।


  क्रिसमस रोज दिल से दिल, मिलते दिखाई दें।

  और नव वर्ष में सब ,एक दूजे को बधाई दें । 

  और बारुद भी ,बर्बादियों के छोड दे आलम ।

  छोटा ,न बडा हो कोई , सारे बराबर हों हम ।


  लौट आऐ, इंशानियत फिर से इंशान में।

  उल्लास' फिर आयेगा 'सुख'सचमुच जहान में।  

               



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