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Juhi Grover

Abstract Tragedy

4  

Juhi Grover

Abstract Tragedy

स्त्री का चरित्र

स्त्री का चरित्र

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ऐसे भी लोग होते हैं,

अपनी माँ को देख कर भी,

दूसरों की बहनों का सम्मान नहीं करते,

बस अपनी बहन की कीमत जानते हैं,

दूसरों का तो बस चरित्र ही नहीं।


ऐसे भी लोग होते हैं,

नारा लगाते हैं स्त्री उत्थान का,

खुद ही उनकी अहमियत नहीं समझते,

दूसरों को क्या समझायेंगे,

स्त्री का तो बस चरित्र ही नहीं।


ऐसे भी लोग होते हैं,

जीवन संगिनी कहते हैं,

कह कर भी बस नहीं मानते,

ऐसी सोच वाले पत्नी कहाँ से लायेंगे,

सोचते हैं यही, स्त्री का तो बस चरित्र ही नहीं।


ऐसे भी लोग होते हैं,

अपने ही दायरे में रखते हैं,

उसके अरमानों को तो ही नहीं समझते,

कैसे ही वो अपने दायरे बढ़ायेंगे,

सोचते हैं, स्त्री का तो बस चरित्र ही नहीं।


ऐसे भी लोग होते हैं,

पुरुष चरित्रहीन हो तो कुछ नहीं,

बुरी नज़र से देख ले तो भी नहीं मानते,

वो अपनी माँ बहन को कैसे बचायेंगे,

सोचते हैं, स्त्री का तो बस चरित्र ही नहीं।


ऐसे भी लोग होते हैं,

लाज शर्म का गहना ओढ़े रहे तो ठीक,

चुप्पी के पीछे छिपी अशान्ति को नहीं जानते,

डरते हैं, कैसे वो बराबरी ही कर पायेंगे,

कहते हैं, स्त्री का तो बस चरित्र ही नहीं।


ऐसे भी लोग होते हैं,

दोगलेपन की राजनीति करते हैं,

स्त्री पुरुष को मुद्दे से ज़्यादा कुछ भी नहीं समझते,

कैसे ये देश को ही चला पायेंगे,

सोचते हैं, स्त्री का तो बस चरित्र ही नहीं।


ऐसे भी लोग होते हैं,

मुँह से तो बस मीठे होते हैं,

मन में मधुरता तो कभी नहीं लाते,

अरे, कैसे ही तुम मानसिकता अपनी बदल पाओगे,

जो कहते हो, स्त्री का तो बस चरित्र ही नहीं।


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