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Kusum Joshi

Tragedy

4  

Kusum Joshi

Tragedy

लड़की हो तुम

लड़की हो तुम

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हंसना तुम्हें यूं आया कैसे,

लाज का पर्दा उठाया कैसे,

लड़की हो तुम समझो ज़रा,

समाज में बोलने का साहस दिखाया कैसे।


ना देखो यहां और इधर उधर तुम,

पलकें झुकाए बैठी रहो तुम,

संस्कार तुम्हारे तब ही दिखेंगे,

इस बात को तुमने भुलाया कैसे,

लड़की हो तुम समझो ज़रा।


समाज की रस्में निभानी हैं तुमने,

सपने की बलि भी चढ़ानी है तुमने,

हर बार तुमसे ही पूछेगा ज़माना,

बिन पूछे कदम बढ़ाया कैसे,

लड़की हो तुम समझो ज़रा।


जो सीख ली तुमने दुनियादारी,

ज्ञान विज्ञान की बातें सारी,

पर बंधन तुम्हारे लिए जो बने थे,

तोड़ने का साहस दिखाया कैसे,

लड़की हो तुम समझो ज़रा।


ज़िम्मेदारी घर की सारी तुम्हारी,

निभानी है तुम्हें ही दुनियादारी,

दो घरों की इज़्ज़त अब भी तुम्हीं से,

इस बात को तुमने भुलाया कैसे,

लड़की हो तुम समझो ज़रा।


मूक दर्शक बनो तुम ज़माने ने चाहा,

विरोध तुम्हारा समाज को कभी ना भाया,

प्रश्न पूछने का तुमको अधिकार नहीं है,

प्रश्न पूछने का साहस दिखाया कैसे,

लड़की हो तुम समझो ज़रा।


गुड्डे गुड़िया से खेलो कोई रोक नहीं थी,

कई सपने संजोने में टोक नहीं थी,

पर सपनों को ही जीवन बना लो,

ये ख्याल भी दिल में आया कैसे.

लड़की हो तुम समझो ज़रा।


एक डोर से बंध बस खिंचती चलो तुम,

जो दुनिया कहे वो करती चलो तुम,

कठपुतली की तरह ये जीवन तुम्हारा,

रिश्तों की चाकी में पिसती चलो तुम,

लड़की हो तुम समझो ज़रा।


बदल गयी हो तुम पर,

ना बदली है सोच पुरुष की,

तुमने छू लिया है अम्बर पर,

समाज आज भी राह पतन पर,

लड़की हो तुम समझो ज़रा।


ये समाज करेगा क़द्र तुम्हारी,

देगा बराबर की हिस्सेदारी,

स्त्री पुरुष दोनों बराबर होंगे,

छद्म विश्वास बनाया कैसे,

लड़की हो तुम समझो ज़रा।।


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