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Prashant Beybaar

Abstract

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Prashant Beybaar

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हौसला

हौसला

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हौसला फिर जगमगाया देर तक

जलती रातों को बुझाया देर तक


थक के तारे उस फ़लक के सो गए

जुगनू इक था टिमटिमाया देर तक


साँसों की वो डोर को थामे रहा

मौत ने मुझ को बुलाया देर तक


बज़्म में था सामने पर था नहीं

झगड़े का रिश्ता निभाया देर तक


महफ़िलों में सब तमाशे हो गये

नाम बस उसका छुपाया देर तक।

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