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Jitesh Choudhary

Abstract

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Jitesh Choudhary

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मेरे वज़ूद को मिटा देता शायद

मेरे वज़ूद को मिटा देता शायद

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कोई मेरी खुद के वज़ूद को मिटा देता शायद,

कहीं कोई मेरी हस्ती मिटा देता शायद,


ये वक्त कोई पीछे ले जाता शायद,

मेरी जहन से कुछ यादें कोई मिटा देता शायद,


मेरी आँखों के सपनों को कोई उरा ले जाता शायद,

उस दुनिया में ले जाओ मुझे,


जहाँ कोई अपना नहीं,

एक गहरी नींद सुला दो मुझे,

जहां कोई सपना नहीं।


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