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Manansh Pokhariyal

Abstract

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Manansh Pokhariyal

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संगीत खेत का

संगीत खेत का

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नन्हा सा वह बीज खेत में

माटी की चादर में लिपटा

आशाओं के स्वप्न भवन में

खुद को देखें पौधा बनता

बाहर आने की उत्सुकता में

भूमी की है गोद में रोता

किलकारियों में राग ही तो गाता

छोटा सा वह बीज खेत में 

हलचल है ले आता


कल कल करती सरिता जब

जल की धारा जड़ तक लाती

मुस्कुराएं पत्ति डाली

फुसफुसायें गीली माटी

जल पहुंचाने को तत्पर नदियां

स्नेह गीत हैं गाती

खेत संग संगम करते ही

हरित धुन में रम जाती


वह स्वाभिमानी भँवरा

मदमस्त खेतों में घूमें

ज़ायका लेने को आतुर

फूलों की पंखुड़ियां चूमें

कृषिभूमि पर हरियाली का

भ्रमर-गीत है गाता

फूलों पर पराग छिड़ककर

नव जीवन ले आता


मेहनतकश कृषक भूमि पर

स्वर्ण उगने की आशा लेकर

भूख निवारण की ज़िम्मेदारी

अपने कांधों में रख कर

रोज़ तपती धूप में वह

अपना तन जलाता

स्वर रुपी मेहनत जोड़कर

वह हरित गीत बनाता


उस भूखे फ़कीर को

साँझ में जब अन्न मिला

भूख प्यास अब तृप्त हुयी

तो उतरा चेहरा फिर खिला

वह अन्न का दाना

अमूल्य मुस्कान ले आता

तब जा कर हरित गीत वह

अमर गान बन जाता।


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