चाँद यूँ ही नहीं जगमगाता
चाँद यूँ ही नहीं जगमगाता
अनंत क्षितिज छोर बैठ
निशा कांति बढ़ा रहा
चाँदनी मंद मंद डाल
अंधियारा छुपा रहा
भांति भांति फ़र्ज़ ख़ातिर
देखो शशि जगमगा रहा
मैया अनुपस्थिति में
मामा बच्चों का बन
शिव ललाट पर विराजमान
शीतल कर धरती का मन
होकर शांतिपूर्ण देखो शशि
झेल रहा सूर्य तपन
नक्षत्र माला पूर्ण करें
चंद्रताबीज़ बन
दिशा भटके को दिखाएं
आशा की किरण
अपेक्षा रहित सर्वत्र संतुष्ट
कर जग को प्रसन्न
दरिद्र तन ढकने को
नभ संग चादर बन जाता
सुंदरता सराहना खातिर
उस पर चार चाँद भी लगाता
कर निंद्रा बलिदान
शशि यूँ ही न जगमगाता
एक दूजे से दूर दो प्रेमी
कुछ ऐसे हालात
चाँद बैठे आसमान में
जोड़े रखता साथ
प्रेमप्रतीक बन चंद्रमा
करें तृप्त मिलन आस
उद्देश्य पे शशि के कभी
जो हों वार्तालाप
बात यह ही रखना जग में
यूँ ही न चमके नभ में
चाँद है कुछ ख़ास
चंद्रमा है ख़ास।