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Manansh Pokhariyal

Others

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Manansh Pokhariyal

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गरज

गरज

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गरज गरज घन बोल उठा

छायी सर घनघोर घटा

वहीं इंद्रवज्र के तीव्र स्वर

व्याकुलता सब इधर उधर


चले पवन झरोखे तीव्र तीव्र

आया अंधकार अति शीघ्र

खौफ़नाक कुदरत का खेल

अँधियारा आंधी का मेल


जन आस लगाए है बैठी

गर्जन गाथा कब कम होगी

दूजी ओर की अलग कहानी

गाँव में सूखा, थी जल त्राहि


प्रजा कामनापूर्ण हो पूजें

मेघ से पानी की बूंदे

गरज संग घन बरसो फिर

जन तृष्णा तृप्ति ख़ातिर


दूर किनारे इक घर में

एक कवि ज्वलित मन से

क्रांति सुर में लिख रहा

उत्तेजित हो देख गगन दशा


लेकर कागज़ नौका अपनी

गर्जन सुनकर बालक दौड़ें

बाल खिलौना ताल किनारे

यथा कामना जल पर तैरें


भय, आशा, क्रांति, उत्साह

कई रूपों का समाहार

है गरज भाव भांति

है गरज स्वभाव भांति


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