इश्किया मौसम
इश्किया मौसम
आज मौसम ही इश्किया है
दिल अपने राज़ कुछ इस तरह खोलेगा
ज़र्रा ज़र्रा बोलेगा
भले ही ज़रा ज़रा बोलेगा
माना लफ़्ज़ों को जुमले में पिरोना मुश्किल
पूरा बदन उन्हें जताने की मशक़्क़त करेगा
ख्वाब मुक़म्मल करने को तड़पेगा
आज अश्क़ अश्क़ बरसेगा
तुम्हारी आवाज़ की तरन्नुम से
मन अपना आपा कुछ इस तरह खो देगा
मुहब्बत का ऐसा बीज बोयेगा
जिसे सीचने को आज अर्श भी रो देगा
मंद हवाओं और बरसात के बीच
सब्र का बांध कुछ इस तरह टूटेगा
अपना हाल बताने को मन चंचल हो उठेगा
ये वक़्त वक़्त भटकेगा
शायद तुम्हारे नाम का ज़िक्र न हों
पर बारिश के क़तरों में तुम्हारा अक्स झलकेगा
बावजूद लाख जतन के दिल कुछ नही बोलेगा
बस दीदार को तरसेगा
गर लोगे देख तुम मेरे जज़्बात
दिल तुम्हारा भी शायद मुझे अपना लेगा
इस प्रेम से सारा जहाँ जलेगा
ये आँख आँख खटकेगा