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Niraj Kumar

Abstract

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Niraj Kumar

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इज़हार-ए-इश्क़

इज़हार-ए-इश्क़

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ना जानें लोग कैसे इज़हार-ए-इश्क़ करते हैं

करते हैं हम भी बहुत,मगर संकोच करते हैं।


न जाने किस उलझन में रातें गुजर जाते हैं,

जाते हैं हम अक्सर,मगर सामने से गुजर जाते हैं।


उस पल को सोचकर ही हम डर सा जाते हैं,

जाते हैं भटक,इश्क़ में आशिक़ बिछड़ जाते हैं।


खुद को सागर के मझधार में फंसे पाते हैं,

पाते हैं किनारा, मगर कहीं पहुँच नहीं पाते हैं। 


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